“यदि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो" — क्या गांधी ने भारतीयों से ऐसा कहा ?

          महात्मा गाँधी के संदर्भ में एक पुरानी अफवाह आज भी हमारे घरों और सार्वजनिक विमर्श में घूमती रहती है — कि उन्होंने भारतीयों से कहा था, “यदि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो।” यह कथन इतनी बार दोहराया गया है कि सत्य जैसा लगता है, पर इतिहास और संकलित रचनाओं को खोल कर देखने पर सच्चाई कुछ और ही निकलती है।


पहला तथ्य स्पष्ट है: यह वाक्य मूलतः ईसा मसीह के उपदेश का अनुवाद है (Sermon on the Mount)। गांधी ने ईसा के इस उपदेश का उदारतापूर्वक हवाला दिया और इसे अपने अहिंसा के सिद्धांत से जोड़ा — पर उन्होंने यह निर्देश भारतीयों को कमजोर दिखाने के रूप में नहीं दिया अपितु अंग्रेजों और पश्चिमी जगत की नैतिकता को चुनौती देने के संदर्भ में उद्धृत किया — यह बताने के लिए कि जो लोग ईसा के अनुयायी होने का दावा करते हैं, उन्हें अपने ही धर्म के सिद्धांतों पर खरा उतरना चाहिए।


गांधी ने अहिंसा को रणनीति और शक्ति माना। वे जानते थे कि अंग्रेजों के पास बंदूकों और शक्ति का जखीरा था; इसलिए उन्होंने वह हथियार चुना जो अंग्रेजों के पास नहीं था — नैतिक उत्कृष्टता और अहिंसा। चंपारण से लेकर नमक सत्याग्रह तक, असहयोग और सविनय अवज्ञा के द्वारा उन्होंने अंग्रेजों के कानूनों और आचरण को चुनौती दी — पर हिंसा का सहारा कभी नहीं लिया। जब अंग्रेजों ने भारतीयों पर क्रूरता दिखाई, तब गांधी ने बाइबिल और ईसा के उपदेश को अंग्रेजी जनता और ईसाइयों के सम्मुख इसीलिए रखा कि उनके अपने धर्म-ग्रंथ उन्हें दया और करुणा का पाठ पढ़ाते हैं — पर वे उस सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे थे।


यह बात भी याद रखने योग्य है कि गांधी ने 1931 के दौर में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी के विरुद्ध इरविन से कई बार  अपील की। जीवनीकारों ने लिखा है कि गांधी ने इरविन की ईसाइयत और करुणा का स्मरण कराते हुए कहा कि आप एक अच्छे ईसाई है।एक अच्छे ईसाई को ईसा के गाल वाले उपदेश का पता होना चाहिए। उन्होंने अंग्रेजों और चर्च के उदार तबके को जगाने के लिए ईसा के शब्दों का प्रयोग किया — ताकि अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल हो और अंग्रेजों के भीतर संवेदनशीलता जागे।




गांधीजी की अहिंसा को तरह तरह से झुठलाने वाले लोग यह नहीं जानते कि गांधी ने अपने पूरे जीवन में अंग्रेजों से कोई रियायत नहीं मांगी। उन्होंने खुद के लिए कठोरता और आम जनता के लिए उदारता दिखाई। गांधीजी कहते थे कि अहिंसा वीरों का हथियार है तथा  एक डरपोक आदमी अहिंसक हो ही  नहीं सकता। 


निष्कर्ष यही है कि आज इंटरनेट के युग में गांधी के संपूर्ण विचार और उनका अहिंसा दर्शन  उपलब्ध हैं — संकलित रचनाएँ, आत्मकथा और जी. डी.  तेन्दुलकर जैसे शास्त्रीय जीवनीकारों की कृतियाँ  गांधीजी के जीवन के एक एक  पल को समेटे हुए हैं। आप व्हाट्सएप संदेशों से गांधी को नहीं जान सकते। सभी कृतियां यह साफ करती हैं कि गांधी का  गाल उपदेश भारतीयों के लिए नहीं था बल्कि अंग्रेजी साम्राज्य को ईसा के उपदेश के माध्यम से नैतिक बनाने के लिए था।  हिंसा के विरुद्ध सत्य और प्रेम की दृढ़ नीति पर गांधीजी ने अपनी अंतिम सांस तक अमल किया। 


अब ये आपके ऊपर है कि गांधी के इस गाल उपदेश मिथक की सच्चाई को समझें या न समझें। सच्चाई यही है  गांधी ने “दूसरा गाल दिखाओ” उपदेश  अंग्रेजों की नीतियों को चुनौती देने के लिए प्रयोग किया था। यह उपदेश किसी भी रूप में भारतीयों के लिए नहीं था। 

गांधीजी का पूरा जीवन हिंसा का सामना करने की हिम्मत और नैतिक प्रतिरोध की प्रेरणा था। उनकी यह अपील  साहस और सत्य के लिए थी, कमजोरी या पराजय के लिए नहीं।


Gandhi Darshan - गांधी दर्शन 

स्त्रोत:-https://www.facebook.com/share/p/177S2kE7b5/

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ