आज अमर आन्दोलन कारी गुरुदेव प्रो. बनवारी लाल शर्मा की याद ताज़ा हो उठी है । 45 साल पहले की बात है। सुबह पता लग चुका था कि उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस कभी भी आवास पर आ सकती है । वे तैयार बैठे थे और इंतज़ार कर रहे थे – ' न दैन्यं, न पलायनम् ' की जीती-जागती प्रतिमूर्ति ! पुलिस उपाधीक्षक दल-बल सहित आये । अधिकारियों ने उन्हें वैन में नहीं बिठाया , बल्कि अपनी सरकारी गाड़ी में सादर आसीन किया था और डीवाई एसपी उसे ख़ुद ड्राइव करते हुए डॉ. शर्मा को केन्द्रीय कारागार , नैनी ( इलाहाबाद ) ले गये ।
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प्रो. डा. बनवारी लाल शर्मा |
याद पड़ता है कि 19 महीने सरकारी मेहमान रहने के बाद जब गुरुदेव रिहा हो कर आए , तब मिलने पर उन्होंने एक महा वाक्य कहा था ; जिसका अनुसरण करना या जिसे अमल में ले आना तलवार की धार पर चलने जैसा है । वह महा वाक्य था – "सत्य के लिए कोई भी बलिदान बड़ा नहीं होता ।"
जिन श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उन्हें हिंसक गतिविधियों में संलिप्त रहने का हवाला देकर ज़ेल में डाला था , उनके प्रति भी डॉक्टर साहब के मन में कोई दुर्भाव नहीं रह गया था । बात उन दिनों की है , जब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ख़िलाफ़ उन्होंने "नई आज़ादी" की लडाई का आवाहन किया था और "आज़ादी बचाओ आन्दोलन" संघर्ष के कई मोर्चों पर डटा हुआ था। उन दिनों स्वराज विद्यापीठ में शाम को हर रोज़ हम सभी कार्यकर्ता सामूहिक चाय-पान करते हुए थोड़ी देर तक आन्दोलन के मुद्दों और कार्यक्रमों के बारे में अक़्सर खुली चर्चा या बातचीत किया करते थे। डॉक्टर साहब की पहल पर नियमित रूप से दैनिक चाय-गोष्ठी होती थी , हालाँकि वे ख़ुद चाय नहीं पीते थे ।
एक दिन उन्होंने कहा था कि आज के सत्ताधारियों की रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है और वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामने घुटने टेक चुके हैं । भले ही, इन्दिरा जी ने हम लोगों को मिटाने के लिए कोई कोर क़सर नहीं रख छोड़ी थी, फिर भी यह मानना पड़ेगा कि उन्होंने पेटेंट एक्ट और एमआर टीपी एक्ट जैसे कानून बनाकर बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नाक में नकेल डालने का काम किया था । उन्होंने आईएमएफ से क़र्ज़ की दूसरी किस्त नहीं ली थी और पहली किस्त का भी इंतज़ाम करके त्वरित भुगतान कर दिया, जब उन्हें इस बात का भान हुआ कि क़र्ज़ के साथ कई अपमानजनक शर्तें जुड़ी हुई हैं ।
डॉ. कृष्ण स्वरूप आनन्दी
(स्वराज विद्यापीठ इलाहबाद)
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