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बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के खिलाफ, जल, जंगल, जमीन, हक व हकूक से जीने की लड़ाई में संघर्षरत, स्वदेशी, सादगी, स्वावलम्बन, व आर्थिक स्वयत्ता पर आधारित नये समाज रचना के लिए प्रतिबद्ध "आजादी बचाओ आंदोलन" का वैब बुलेटिन "नई आजादी उद्घोष".



गहन अध्येता और बेजोड़ इतिहासकार प्रो.धर्मपाल ने एक बार चर्चा के दौरान आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता और अगुआ प्रो. बनवारी लाल शर्मा से कहा था कि आंदोलन की आयु 4-6 वर्ष से ज्यादा नहीं होती इसलिए उनका सुझाव था कि आजादी बचाओ आंदोलन से जो हासिल करना हो इसका पुरजोर प्रयास तेजी से होना चाहिए क्योंकि वह अल्पजीवी है आजादी बचाओ आंदोलन ने धर्मपाल जी की प्रस्थापना को झुठला दिया था और वह 5 जून 2023 को 35 वें वर्ष में प्रवेश कर गया। विचार, सृजन और संघर्ष की दृष्टि से उत्तरोत्तर और अधिक प्रासंगिक होता जा रहा है।

               दुनिया में ज्यों-ज्यों कॉर्पोरेटीकरण का विस्तार हो रहा है और नतीजन उसके साथ ही गैर बराबरी,बेरोजगारी, बेबसी, भूख, बीमारी, गरीबी व तबाही बढ़ती जा रही है।त्यों-त्यों आजादी बचाओ आंदोलन का पैगाम परवान चढ़ रहा है। कॉर्पोरेट नीति बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के मकड़जाल में अधिसंख्य लोग फंसते जा रहे हैं और उनसे उनका सब कुछ छीना जा रहा है। इस नए उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई दरअसल आजादी की नई लड़ाई है यह एहसास दुनिया भर के देशो, समुदायों और समाजों में जन गण के बीच पुख्ता होता जा रहा है।।
           दुनिया में जगह-जगह लोग छोटे-छोटे स्तर पर अपने क्षेत्रीय प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।वे बार-बार यह ऐलान कर रहे हैं की समस्त प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का स्वामित्व भू स्थानीय लोक समुदायों में सन्निहित है। सरकारों और अदालतों को प्राकृतिक संपदा या पूंजी के बारे में प्रथम व अंतिम निर्णय लेने का अधिकार नहीं है क्योंकि उनकी मलकियत या उस पर संप्रभुता लोगों की है यानी समुदाय या स्थानीय जनसमुदाय की है। आजादी बचाओ आंदोलन के बैनर तले यह आवाज देश के तमाम खनिज बहुल और प्राकृतिक संपदा पर प्रचुर इलाके में गूंज रही है इसकी धमक देश भर में सुनाई पड़ रही है दुनिया में जहां कहीं भी लोग संगठित होकर प्राकृतिक संसाधनों पर अपने मालकियत या हक व हकूक के लिए संघर्ष कर रहे हैं या उसके लिए संघर्षरत है वहां भले ही आजादी बचाओ आंदोलन का नाम लोगों की जुबान पर ना हो लेकिन उसके नारे सिद्धांत और विचार स्थानीय जनमानस के सर चढ़ बोल रहा हैं। संसाधन स्वराज से जुड़े जो बुनियादी मुद्दे आजादी बचाओ आंदोलन दो दशक पहले लगभग अकेले उठा रहा था आज उन्हें प्रायः सभी परिवर्तनकांक्षी,समाज कर्मी,जनता  के सरोकारो के प्रति समर्पित संगठन और विभिन्न संघर्ष मोर्चों पर सक्रिय जन आंदोलन जोर-शोर से उठा रहे हैं आजादी बचाओ आंदोलन के मुद्दे धीरे-धीरे जन आंदोलन के मुद्दे बन गए हैं।।
    बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेट नित उपनिवेशवाद के ताने बाने को सबसे पहले आजादी बचाओ आंदोलन ने लोगों के सामने विस्तार के साथ बारीकियों से रखा उसकी जटिलताओं, सूक्षमताओं और कार्यविधियों को लोगों के सामने उजागर किया।किस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय वित्त एवं व्यापार संगठन बहुपक्षीय समझौते और वैश्विक थिंक टैंक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साम्राज्य विस्तार के लिए सुनियोजित,गुप्त व शातिराना ढंग से काम कर रहे हैं इसका खुलासा आंदोलन लगातार करता चला आ रहा है कैसे हमारी राजनैतिक संप्रभुता,सांस्कृतिक अस्मिता और आर्थिक स्वतंत्रता पर कोरपरेटी ग्रहण लगा हुआ है? कैसे देश की सम्पतियो को कॉरपोरेट घराने या समूह को नीलाम की जा रही है? कैसे जन-गण की प्राकृतिक संसाधनों की कॉरपरेटी  लूट चल रही है? कैसे खेती किसानी चौपट हो रही है?कैसे पर्यावरण का नाश किया जा रहा है? कैसे देसी उद्यम या धंधे हुनर बर्बाद हो रहे हैं?इन सब अहम सवालों पर आजादी बचाओ आंदोलन के सदस्य आम जन के बीच जाकर उन्हें तंद्रा से झकझोरते रहे है।
आजादी बचाओ आंदोलन का जन्म 5 जून 1989 को हुआ था यह वह दौर था जब भूमंडलीकरण देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह खुलवाने के लिए दस्तक दे रहा था उस समय लोगों को यह मालूम नहीं था कि जल्दी ही देश कॉर्पोरेट नीति की गुलामी के जाल में फसने जा रहा है।अग्रणी समाज कर्मी, क्रांतिदर्शी,मनीषी और मूलगामी गणितज्ञ डॉक्टर बनवारी लाल शर्मा को इस बात की प्रतीति स्पष्ट तौर पर हो चुकी थी इसलिए उन्होंने आजादी बचाओ आंदोलन का सूत्रपात किया।
    आजादी बचाओ आंदोलन का दुरगामी लक्ष्य है देश में कॉर्पोरेट नीति बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के स्थान पर शांतिपूर्ण शुद्ध और सात्विक उपाय के द्वारा जन गण नीति सामुदायिक स्वराज की स्थापना उसके लिए देश के जनगण को यहां एक और ऊपर से थोपे जा रहे कॉर्पोरेट केंद्रित भूमंडलीकरण से लड़ना होगा वहीं दूसरी ओर उन्हें नीचे से स्वराज मूलक नये समाज की रचना करनी होगी ध्यान रहे की नई औपनिवेशीकरण के दौर में सरकारी बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेट सत्ता की एजेंट बन गई है।



            आजादी बचाओ आंदोलन